आखिर आंसू क्यों न निकले …
दारोगा जी ने बृद्ध को उलट पलट कर देखा तो दारोगा जी सन्न रह गए बृद्ध की साँसे चल रही थीं उसके ऊपर थोड़ा पानी छिड़का तो उसने जल्द ही आँखे खोल दी और बहुत अचम्भित होकर अपने चारों और खड़ी भीड़ को देखा दारोगा जी ने कई प्रश्न पूछे लेकिन बृद्ध शुन्य में निहारता रहा बड़े प्रयासों के बाद उसने इशारा किया कि उसे कुछ खिला दो , दारोगा जी ने पास ही एक घर का दरवाजा खटखटाया , उस घर की मैडम ने तुरंत ही खाने को रोटियाँ सब्जी पानी सब दिया, दारोगा जी ने अपने हाथों से बृद्ध को निबाला खिलाया इस बृद्ध को तीन दिनों से खाना नहीं मिला था भूख से तड़प कर शरीर से जान निकल ही जाने वाली थी कि किसी ने आकर एक निबाला दिया तो जान बच गयी मैं सोच कर ही हताशा से भर गया , एक वक़्त खाना न मिले तो कितनी तड़प लगती है , और इसके पास तो तड़पने के सिवाय कोई चारा ही नहीं था , तड़पते हुए इसने हज़ारों गाड़ियों को कारों को अपने सामने से आता जाता हुआ देखा होगा हज़ारो लोग खाने पीने का सामान को लाते लेजाते हुए देखा होगा सोच रहा हूँ कि उस वक़्त उसके दिमाग में क्या चल रहा होगा , खैर भूख के सामने शरीर घुटने टेक ही देता है शर्मनाक लगता है ये सोचना कि आज़ादी के 69 वर्षों के बाद भी इंसान भूख से तड़प तड़प कर मर जा रहा है, भला हो उस इंसान का जिसने कॉल करके सूचना तो दी, उस मैडम का जिन्होंने खाना दिया और ईश्वर भला करे दारोगा जी का जिन्होंने मानवीयता का परिचय देते हुए एक शानदार उदहारण प्रस्तुत किया ग़ाज़ीपुर में तैनात दारोगा जी जय किशोर अवस्थी को पहचान एक्सप्रेस संस्था सलाम करती है |