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विरासत : रूचि एवं सुजाता के कथक ने दर्शको का मोहा मन

 

देहरादून। विरासत आर्ट एंड हेरीटेज फेस्टिवल 2022 के दसवें दिन की शुरुआत ’विरासत साधना’ कार्यक्रम के साथ हुआ। ’विरासत साधना’ कार्यक्रम के अंतर्गत विजय दत्त श्रीधर द्वारा राष्ट्र, संस्कृति और धरोहर के ऊपर वार्ता रखा गया। इस वार्ता में विजय दत्त श्रीधर बेंजामिन फ्रैंकलीन के एक कोट के साथ शुरुआत करते हैं वह कहते हैं कि ’इंसान को या तो कुछ ऐसा सार्थक लिखना चाहिए जिसे खूब पढ़ा जाए या फिर कुछ ऐसा सार्थक किया जाना चाहिए जिसके बारे में खूब लिखा जाए’। बेंजामिन फ्रैंकलिन के इस कोट के साथ उन्होंने सभा में मौजूद सभी लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं, फिर उन्होंने विज्ञान और कला के अंतर को समझाया और उन्होंने उदाहरण देकर बताया कि कैसे विज्ञान और कला में फर्क होता है। उन्होंने छोटी-छोटी कहानियों से कला, सहित और संस्कार को समझाया और उसे विरासत में मिली जानकारी को सहेजने का काम हमारे युवा लोग कैसे कर सकते हैं उसे भी विस्तार पूर्वक से बताया। वे कहते हैं कि विरासत को संभालना अगर किसी से सीखना है तो उसे गौरा देवी से सीखना चाहिए।  उन्होंने चमोली के चिपको आंदोलन का जिक्र किया और कहा कि किस तरह से हमारे पहाड़ की महिलाएं अपने विरासत, धरोहर और प्रकृति की यह अद्भुत संपदा को सहेजने का काम करती है उसे हम गौरा देवी से सीख सकते हैं। वे राष्ट्र, संस्कृति और धरोहर कि बातें को आगे बढ़ाते हुए चाणक्य के नीतियों और उसके उपयोग राज्य के रक्षा के लिए कैसे करना चाहिए उसे भी विस्तार से बताया। चाणक्य के नीतियों कि मदद से किस तरह से हम अपने विरासत को बचाना, संभाल के रखना और उसका इस्तेमाल करना चाहिए यह आज के युवा वर्ग को चाणक्य पढ़कर सीखने की जरूरत है। वे चर्चा को आगे बढ़ाते हुए कहते हैं कि योग हमारे भारत से सभी जगहों पर फैला और अब वह विश्व का एकमात्र ऐसा साधन है जिसे लोग हर सुबह-शाम अपनाने के लिए तैयार हैं। कुछ साल पहले योग को हम उतना नहीं जानते समझते थे परंतु जब योग अमेरिका और यूरोप से होते हुए हमारे भारत में योगा बनकर आया तब हम सब उसे खूब समझने लगे और सराहनें लगे और अपनी दिनचर्या में शामिल करने लगे। इसमें मेरा कहने का तात्पर्य है कि हमारे. हमारे भारत में बहुत कुछ पहले से विद्यमान है परंतु हम उसे समझने में निरंतर देर कर देते हैं और इसी का फायदा बाहर के देशों के लोग उठाते हैं, और यहीं पर हमें समझ में आता है कि हमारा राष्ट्र, संस्कृति और धरोहर को सहेजना कितनी जरूरत है। अपने वक्तव्य में उन्होंने गांधीजी और चंपारण का भी जिक्र किया जिसमें वे बताते हैं कि किस तरह से  गांधीजी अपनी संस्कृति और धरोहर को बचाने के लिए निरंतर प्रयास कर  रहे थे। अंत में उन्होंने विरासत के आयोजकों को धन्यवाद दिया और उन्होंने कहा कि इस तरह के आयोजन से हमारी नई पीढ़ी के लोगों को हमारे संस्कृति और धरोहर को सहेजने का ज्ञान मिलता है

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