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नेता चले अब जनता की ओर….

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देहरादून। राज्य बनने के बाद से ही नेताओं ने अपना ध्यान कुर्सी हासिल करने पर ही केंद्रित किए रखा, जिसके चलते राज्य विकास की की दौड़ में पिछड़ गया। विकास योजनाएं दम तोड़ती दिखाईं थी। भाजपा हो या कांगे्रस नेताओं की महत्वाकांक्षा के चलते प्रदेश का अहित देखने को मिला। मुख्यमंत्री की कुर्सी हासिल करने के लिए जिस तरह की खींचतान देखने को मिली उसका उदाहरण शायद ही कहीं और देखने को मिला हो। परंतु अब राष्ट्रपति शासन लगने के बाद नेताओं को अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़नी पड़ रही है। जिस जनता को उन्होंने मझधार में छोड़ दिया था अब वही उन्हें खेवनहार दिखाई देने लगी है। विधानसभा में 18 मार्च को विनियोग विधेयक के दौरान जिस प्रकार का अभूतपूर्व हंगामा हुआ। उसके बाद राज्य के राजनीतिक हालत पूरी तरह बदल गए। तत्कालीन मुख्यमंत्री से लेकर विपक्षी भाजपा एक दूसरे को झूठा और गलत ठहराते रहे। एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोपों की परिणित स्वरूप राज्य में राष्ट्रपति शासन लग गया। अब इन्हीं नेताओं को जो कल तक एक दूसरे के खिलाफ तलवारें निकाले बैठे थे अपने अस्तित्व की चिंता सताने लगी। सरकार में रहते हुए कुछ न करने के कारण जनता का भी इन्हें समर्थन हासिल नहीं हो पा रहा है। जिस जनता को इन्होंने झूठे वायदों और आश्वासनों के मकड़जाल में उलझाए रखा था। अब वह उसी जनता के दरबार में अपनी हाजिरी लगा रहे हैं और उसे उम्मीद भरी नजरों से देख रहे हैं। कांगे्रस में हुई टूट के बाद पार्टी के लिए हालात संभालना मुश्किल होता जा रहा है। कांगे्रस को अभी भी अपने और विधायकों के बागी होने का डर सता रहा है। जिसके चलते उसने अपने विधायकों को हिमाचल प्रदेश में अलग-अलग स्थानों पर भेज दिया है। इसे लेकर भी जनता के बीच कांगे्रस को लेकर गलत संदेश जा रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री सड़क पर उतरकर जनता को भाजपा की कारगुजारियों से अवगत कराने का दावा कर रहे हैं। जबकि भाजपा भी कुछ इसी तरह की रणनीति पर चल रही है। उसका मानना है कि राज्य की जनता के समक्ष हरीश रावत सरकार के कारनामांे की पोल खुल चुकी है। बहरहाल जो नेता कल तक सचिवालय और विधानसभा के फेरे लगाते थे वह आज जनता के बीच खड़े हैं और अपने पाक-साफ होने का दावा करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहें हैं।

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