इनसे सीखे : दृष्टिहीन श्रीकांत ने खड़ी की करोड़ों की कंपनी
आंध्र प्रदेश | शारीरिक असक्षमता के कारण कोई इंसान समाज को अनुपयोगी लग सकता है लेकिन उनकी ज़िंदगी भी ख़ास होती है और मौका मिले तो वे भी खु़द को साबित कर सकते हैं | ठीक उसी तरह जिस तरह इस नेत्रहीन लड़के ने खुद को साबित किया | हम जिस लड़के की बात कर रहे हैं उसका नाम है श्रीकांत बोला | आंध्र प्रदेश के सीतारामपुरम, मछलीपट्टनम शहर में 7 जुलाई 1992 को जन्मे श्रीकांत बोला बचपन से ही दृष्टिहीन हैं | उनके परिवार की आर्थिक स्थिति बेहद कमज़ोर थी | महीने भर में 1600 रुपये कमाने वाले परिवार में ऐसे दृष्टिहीन बच्चे का जन्म किसी शोक से कम नहीं था | घर वाले तो जैसे तैसे इस दुख को बर्दाश्त कर रहे थे लेकिन रिश्तेदारों और पड़ोसियों से इस बच्चे का जिंदा रहना बर्दाश्त नहीं हो रहा था | सभी ने श्रीकांत के परिवार को सलाह दी कि वे उसे मार दें | उन सभी का मानना था कि ये बच्चा दृष्टिहीन होने के कारण किसी काम का नहीं है और बड़ा हो कर परिवार पर बोझ ही बनेगा | 10वीं के बाद श्रीकांत ने साइंस लेने की सोची, लेकिन स्कूल ने उन्हें दाखिला देने से मना कर दिया | उनका कहना था कि साइंस विषय उन जैसे दृष्टिबाधित बच्चों के लिए नहीं है | ऐसा बेतुका नियम उनके जैसे छत्रों के साथ एक अन्याय की तरह था. उन्होंने इसके खिलाफ आवाज उठाने की ठानी और स्कूल पर केस कर दिया | अपनी पढ़ाई को लेकर उनकी ये कानूनी लड़ाई लगभग 6 महीने तक चली और उन्हें साइंस पढ़ने की इजाज़त मिल गई | इसके लिए भी एक शर्त रखी गई और वो ये कि उन्हें अपनी पढ़ाई अपने रिस्क पर करनी होगी | यदि किसी प्रयोग के दौरान उनके साथ कोई दुर्घटना होती तो इसमें स्कूल की कोई जवाबदेही नहीं होती. श्रीकांत ने ये शर्त भी मान ली और पढ़ाई में जुट गए | MIT से पढ़ाई पूरी करने के बाद श्रीकांत को अमेरिका की कई कॉर्पोरेट कंपनियों में नौकरी करने के ऑफर मिले लेकिन उन्होंने सभी ऑफर ठुकरा दिए | एक गरीब परिवार से आने वाले दृष्टिहीन युवक के लिए विदेश की नौकरी से बढ़िया भला क्या ही हो सकता है ? लेकिन, श्रीकांत ने मना कर दिया क्योंकि उन्हें अपने देश के लिए, यहां के कमजोर लोगों के लिए कुछ करना था | अपनी इसी सोच के साथ वह भारत लौट आए और यहीं अपने काम शुरू करने की तैयारी में जुट गए | 2012 में भारत लौट कर श्रीकांत ने बौलैंट इंडस्ट्री के नाम से एक कंज्यूमर फूड पैकेजिंग कंपनी की शुरुआत की | आज की तारीख में बोलैंट इंडस्ट्रीज ने आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक सहित अपनी 7 यूनिट स्थापित कर ली हैं | पत्तियों और इस्तेमाल किए गए कागज से ईको-फ्रेंडली पैकेजिंग बनाने वाली ये कंपनी 2012 से लगातार 20 प्रतिशत मासिक की दर से विकास कर रही है | आज श्रीकांत की 7 फैक्ट्रियों में हर महीने करोड़ों की सेल होती हैं तथा उनकी कंपनी का टर्न ओवर दो सौ करोड़ से ज़्यादा है | जानकारी हो कि चार साल पहले ही कंपनी की वैल्यू 412 करोड़ रुपये आंकी गई थी |